जनहितकारी सरकारी योजनाएंः स्कूलों में 60 लाख बच्चे बढ़े, 1.84 करोड़ मुफ्त पुस्तकें… दिव्यांग छात्रों से लेकर स्कूलों में सुविधाओं तक, 7 पॉइंट्स में समझें योगी सरकार ने कैसे बदल दी यूपी की शिक्षा व्यवस्था

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यदि सामाजिक बदलाव लाना है तो सर्वप्रथम समाज को शिक्षित करना पड़ेगा। भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी युवा शक्ति है जिसे एक बेहतर मानव संसाधन के रूप में तैयार करने के लिए बेहतर शिक्षा देनी पड़ेगी। उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार ने पिछले 6 वर्षों में शिक्षा के हर क्षेत्र में बुनियादी स्तर से बदलाव लाने का सार्थक प्रयास किया। शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी बदलाव बुनियाद को मज़बूत करके ही लाया जा सकता है।

इस सरकार ने न केवल प्राथमिक शिक्षा के सुधार हेतु कई कदम उठाए, अपितु शिक्षा व्यवस्था की कार्य शैली में हर स्तर पर बड़े बदलाव देखने को मिले। ‘बीमारू राज्य’ की संज्ञा से नवाज़ा गया उत्तर प्रदेश सरकारी शिक्षा व्यवस्था के ख़स्ताहाल हो जाने का दंश झेल रहा था। प्राथमिक विद्यालयों की छवि एक दिन में ख़राब नहीं हुई थी, इसके पीछे वर्षों की सरकारी अकर्मण्यता शामिल थी।

परिणामस्वरूप निजी विद्यालयों का धंधा खूब फला-फूला। प्राथमिक पाठशालाओं में शिक्षकों के साथ-साथ कमरों, कुर्सी -मेज़, बिजली-पानी और शौचालय जैसी बुनियादी व्यवस्थाएँ न होने से विद्यालय होने की श्रेणी में ही लोग इन्हें नहीं शामिल करते थे ।इस सरकार ने बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त कर सर्वप्रथम लोगों को यह एहसास कराया कि ये पठन-पाठन का प्राथमिक केंद्र है।

शिक्षकों की कमी दूर की गई
कोई भी शिक्षा का केंद्र केवल अपने भवन की वजह से नहीं जाना जाता है, उसको बेहतर बनाने का कार्य वहाँ के शिक्षक करते हैं। उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी थी। अपने कार्यकाल में लगभग एक लाख बीस हज़ार शिक्षकों की भर्ती कर इस सरकार ने एक बड़ी चुनौती को ख़त्म किया। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष रही, अभ्यर्थी पहले की तरह सालों-साल न्यायालय के दरवाज़े नहीं खटखटा रहे थे। अपितु निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से हुई नियुक्तियों ने एक बार फिर से लोगों में विश्वास पैदा किया।

विद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं पर विशेष ध्यान

विद्यालयों में शिक्षकों की कमियों को दूर करने के साथ-साथ लगभग 93,000 प्राथमिक विद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं को सही किया गया। प्राथमिक विद्यालय महमूदपुर, प्राथमिक विद्यालय मोहरिकला, प्राथमिक विद्यालय नरही, प्राथमिक विद्यालय मिर्ज़ापुर जैसे विद्यालय प्राइवेट विद्यालयों से हर क्षेत्र में बेहतर साबित हो रहे थे जिस वजह से ये काफ़ी चर्चित भी रहे।

जून 2018 में माननीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत के सबसे बड़े अन्तर्विभागीय कनवर्जन्स प्रोग्राम में से एक ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ की शुरुआत की थी। इसके अन्तर्गत केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न मदों जैसे समग्र शिक्षा अभियान, ग्राम पंचायत निधि, जिला खनिज निधि, नगरीय क्षेत्र की विभिन्न निधियां, जल जीवन मिशन, मनरेगा इत्यादि में विशेष रूप से धनराशि उपलब्ध कराई गई है जिसमें अन्तर्विभागीय समन्वय स्थापित कर प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों की मूलभूत अवस्थापनात्मक सुविधाओं को कायाकल्पित किया जा रहा है।

‘ऑपरेशन कायाकल्प‘ को शुरू हुए अभी लगभग 4 वर्ष हुए हैं मगर इस अल्प अवधि में ही प्रदेश के प्रत्येक विद्यालय में चरण बद्ध रूप से कायाकल्प का कार्य प्रारम्भ हो चुका है । प्रत्येक जनपद में बड़े पैमाने पर स्कूलों का कायाकल्प किया जा चुका है। इसकी प्रमाणिकता एवं पारदर्शिता हेतु विद्यालय की फोटो प्रोटोकॉल के तहत जीओ टैगिंग करवाई जा रही है। प्रेरणा पोर्टल के माध्यम से निरंतर इन कार्यों के सन्तृप्तिकरण का रियल टाइम अनुश्रवण भी किया जा रहा है।

इन विद्यालयों में गेट, चारदीवारी, फर्श पर टाइल्स, खेलने के लिए पार्क और लाइब्रेरी के साथ डिजिटल क्लास रूम्स, बालक और बालिकाओं के लिए अलग अलग शौचालय, पीने के पानी और हाथ धोने के लिए हैण्डवॉश सिस्टम, क्लास रूम में बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। बेसिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए वित्त वर्ष 2016-17 में 55,176 हजार करोड़ से बढ़ाकर वित्त वर्ष 2021-22 में 63,455 तक पहुँचाया है। इसे प्रति वित्त वर्ष लगातार बढ़ाया ही जा रहा है ताकि हमारे भविष्य के लिए नींव को मज़बूत किया जा सके।

लगातार विद्यार्थियों के पंजीकरण में इज़ाफ़ा
सरकारी विद्यालय कहने पर ही हमारे मन-मस्तिष्क में वह छवि आती थी जहाँ टूटी दीवारें, जर्जर इमारत और बिना शिक्षक के शोर मचाते बच्चे। उनकी इतनी ख़राब छवि के कारण ही गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में भेजने को मजबूर होने लगे थे। इस सरकार के आने के बाद, अर्थात् 2017 से अब तक लगभग 60 लाख बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में बढ़े हैं। यदि लोगों का विश्वास सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बढ़ा न होता तो इतनी बड़ी मात्रा में बच्चे इन सरकारी विद्यालयों में दाख़िला न लेते।

उत्तर प्रदेश में ग़रीबों की संख्या अधिक है इसलिए वहाँ अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। चूँकि प्राथमिक शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है इसलिए बच्चों के भविष्य निर्माण हेतु 1.84 करोड़ पाठ्य पुस्तकें, 1.83 करोड़ बस्ते, 1.61 करोड़ विद्यालय की पोशाकें मुफ़्त में वितरित की गईं। इस व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाने के लिए डी.बी.टी. के माध्यम से छात्र-छात्राओं को यूनीफार्म, स्वेटर जूते-मोजे एवं स्कूल बैग खरीदने के लिए अभिभावकों के बैंक खातों में 1100 रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।

परिषदीय प्राथमिक, परिषदीय उच्च प्राथमिक, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय एवं राजकीय विद्यालयों में अध्ययनरत् समस्त बालिकाओं (के0जी0बी0वी0 बालिकाओं सहित), अनुसूचित जाति के बालकों, अनुसूचित जनजाति के बालकों एवं गरीबी रेखा के नीचे के परिवार के प्रत्येक छात्र-छात्रा को दो जोड़ी यूनीफार्म हेतु 600 रुपए, स्वेटर हेतु 200 रुपए, जूता-मोजा हेतु रू0 125, स्कूल बैग हेतु 175 रुपए – अर्थात् कुल 1100 रुपए प्रदान किए जा रहे हैं।

समग्र शिक्षा के अन्तर्गत प्रदेश के सभी जनपदों में संचालित परिषदीय प्राथमिक/उच्च प्राथमिक विद्यालयों, राजकीय विद्यालयों, अशासकीय सहायता प्राप्त प्राथमिक/उच्च प्राथमिक एवं समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित राजकीय व सहायता प्राप्त विद्यालयों तथा सहायता प्राप्त मदरसों में अध्ययनरत् कक्षा 01 से 08 तक के समस्त छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहन के रूप में निःशुल्क पाठ्य-पुस्तक वितरित की जाती हैं। राज्य में पाठ्य पुस्तकों का विकास हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी, उर्दू भाषा एवं ब्रेल लिपि में भी किया जाता है। ये सब उपाय सरकार द्वारा इसलिए किए जा रहे हैं ताकि कोई भी बच्चा किसी भी प्रकार के संसाधन के न रह पाने के कारण शिक्षा से वंचित न रह जाए।

प्राथमिक शिक्षा यदि बेहतर है तो आगे की शिक्षा के बेहतर होने की सम्भावना बढ़ जाती है इसलिए सर्वाधिक कार्य आधार पर किया जाना चाहिए जो कि अनवरत किया जा रहा है। इनमें भी कुछ व्यावहारिक समस्याएँ हैं। केवल शिक्षक नियुक्ति या आधारभूत सुविधा बाधा देने से शिक्षा व्यवस्था सुधर नहीं जाती। औचक निरीक्षण में विद्यालयों में नदारद शिक्षकों के लिए सरकार बायोमैट्रिक प्रणाली को अपनाने की बात कर रही है। शिक्षकों की उपस्थिति को ऑनलाइन बनाने की ओर कदम बढ़ाया गया । छोटे-छोटे प्रशासनिक सुधार का समाज पर व्यापक असर पड़ता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस सरकार ने लोगों के मानस पटल पर विद्यालयों की छवि को सुधार दिया है।

आधार की मजबूती के बाद सरकार ने उसके ऊपर होने वाले भवन निर्माण पर भी पूरा ध्यान दिया। माध्यमिक विद्यालयों में भी प्राथमिक विद्यालयों की तरह ही बेहतर आधारभूत सुविधाओं को सुनिश्चित किया गया। सीबीएसई के पाठ्यक्रम को अधिक श्रेष्ठ व आगे की प्रतियोगी परीक्षा के लिए अधिक उपयोगी मानने के कारण तथा देश में एक ही तरह का पाठ्यक्रम लागू करने की बहस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपने यहाँ यही पाठ्यक्रम लागू किया।

प्रतियोगी परीक्षाओं के दौर में शहरी छात्र ग्रामीण छात्रों से आगे निकल ही जाते हैं क्योंकि उनके पास अतिरिक्त सुविधाएँ हैं। इस हेतु वर्तमान सरकार ने अभ्युदय कोचिंग निःशुल्क प्रारम्भ की ताकि छात्र किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में अपनी बेहतर तैयारी कर सकें। 70,000 से अधिक ई-पेज का कंटेंट ऑनलाइन पोर्टल पर चढ़ाया जा चुका है जिससे छात्र किसी भी समय इसको आराम से पढ़ सकें।

दिव्यांग विद्यार्थियों हेतु कई सार्थक प्रयास
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को पर्याप्त उपकरण उपलब्ध किया जाता है। मापन एवं वितरण शिविर में एलिम्को कानपुर के सहयोग से दिव्यांग बच्चों को विभिन्न प्रकार के सहायक उपकरण यथा- ब्रेल किट्स, मोबिलिटी केन, स्मार्ट केन, डेजीप्लेयर, ट्राईसाइकिल, व्हील चेयर, क्रचेज, कैलीपर्स, रोलेटर्स वाकिंग स्टिक, सी0पी0 चेयर, मल्टी सेन्सरी एजुकेशन किट एवं हियरिंग एड उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था है।

गम्भीर एवं बहु-दिव्यांग बच्चों हेतु होम बेस्ड एजूकेशन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के टास्क संख्या 186 के क्रम में गम्भीर एवं बहु दिव्यांग बच्चों को उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप लर्निंग मटेरियल उपलब्ध कराते हुए होम बेस्ड एजुकेशन की व्यवस्था की गई है। विद्यालयों में अध्ययनरत पूर्ण दृष्टि दिव्यांग बच्चों को ब्रेल पाठ्य पुस्तकें एवं ब्रेल स्टेशनरी मटेरियल यथा- ब्रेल पेपर, स्टाइलस, अबेकस, अल्फाबेट ट्रेनर प्लेट आदि उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था की गई है।

अल्प दृष्टि दिव्यांग बच्चों को उनके शैक्षिक पुनर्वसन हेतु इनलार्ज प्रिंट की पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था की गई है। अल्प दृष्टि दिव्यांग बच्चों को उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लो-विजन किट सामग्री यथा- LED मैग्नीफायर लेंस, फुल पेज फ्रेन्सल लेंस, व्हाइट पेपर, बोल्ड मार्कर आदि सामग्री उपलब्ध कराए जाने हेतु व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही दिव्यांग छात्राओं की सम्प्राप्ति स्तर को बढ़ाने तथा उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से दिव्यांग छात्राओं को स्टाइपेण्ड उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था है।

अन्य शैक्षणिक कार्यक्रमों का विस्तार
भारत सरकार द्वारा केन्द्र पुरोनिधानित “नव भारत साक्षरता कार्यक्रम” नामक एक नवीन योजना का संचालन दिनांक 01 अप्रैल, 2022 से 31 मार्च, 2027 (कुल 5 वर्ष) तक संचालन किए जाने का निर्णय लिया गया है। इसके अंतर्गत 15+ वयवर्ग के निरक्षरों विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों, दिव्यांगजनों आदि को संबंधित जनपदों के खण्ड शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से 15+ वयवर्ग के निरक्षरों को चिह्नित करने के उपरान्त साक्षर किया जाएगा। उक्त हेतु वित्तीय वर्ष 2022-23 में योजना के सफल संचालन के लिए भारत सरकार द्वारा लगभग 34 करोड़ रुपए धनराशि का प्रावधान किया गया है।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अन्तर्गत 06-14 आयु वर्ग के ऐसे बच्चे जिन्हें किसी विद्यालय में नामांकित नहीं किया गया है अथवा नामांकन के उपरान्त वे अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके हैं उनका चिह्नीकरण करते हुए उनका नामांकन आयुसंगत कक्षा में कराया जाए और अन्य विद्यार्थियों के समकक्ष लाने हेतु उन बच्चों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

उक्त प्रावधान को प्रभावी रूप में क्रियान्वित करने हेतु कार्यक्रम ’शारदा’ संचालित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त विद्यालय में अनेक शिविर व शिक्षकों हेतु अनेक कार्यशालाएँ जैसे निजी विद्यालयों के शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किए जाते हैं, उसी प्रकार यहाँ भी 24220 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम, यूनिसेफ तथा निमहान्स के सहयोग से 20500 शिक्षक/शिक्षिकाओं का जेण्डर संवेदीकरण प्रशिक्षण, आत्मरक्षा प्रशिक्षण के अन्तर्गत मॉड्यूल का निर्माण,

यूनिसेफ के सहयोग से 150 मास्टर ट्रेनर्स का जीवन कौशल शिक्षा पर आधारित कार्यशाला, निमहान्स बंगलौर के सहयोग से स्पेशल फोकस जनपदों के 50 एस0आर0जी0 की बाल अधिकार, तनाव प्रबन्धन आदि मुद्दों पर 25 दिवसीय कार्यशाला, निमहान्स बंगलौर के सहयोग से स्पेशल फोकस जनपदों के समस्त जनपदों से 100 शिक्षकों की बाल अधिकार, तनाव प्रबन्धन आदि मुद्दों पर 25 दिवसीय कार्यशालाओं का आयोजन किया गया।

उच्च शिक्षा का बदलता स्वरूप
वर्तमान सरकार इक्यावन राजकीय महाविद्यालयों की स्थापना कर रही है, 28 नए निजी विश्वविद्यालय खोले जाने पर मुहर लग ही गई है। इसके साथ ही साथ खेल विश्वविद्यालय, पुनर्वास विश्वविद्यालय, फ़ोरेंसिक विश्वविद्यालय, आयुष विश्वविद्यालय भी खोले जा रहे हैं। सरकार ने प्राविधिक शिक्षा के क्षेत्र में लगातार नए कॉलेज को मंज़ूरी दी है। पूरे राज्य में वर्तमान समय में 1417 पॉलीटेक्निक कॉलेज हैं जो पहले के दोगुने से भी ज़्यादा हैं

7 लाख से अधिक लोगों को कौशल विकास मिशन के तहत प्रशिक्षित किया गया। ये ऐसे आँकड़े हैं जो यह दर्शाते हैं कि राज्य में शिक्षा के हर क्षेत्र में प्रयास किए जा रहे हैं जो सबके समक्ष हैं। 14 नए मेडिकल कॉलेज के लिए 2491 करोड़ का बजट पास किया गया है।

नए विद्यालय-कॉलेज का निर्माण तो बेहतर है परंतु उनके उचित क्रियान्वयन के अभाव में सब व्यर्थ हो जाता है।उत्तर प्रदेश में परीक्षा व्यवस्था नक़ल माफिया का पर्याय हो चुकी थी। अपनी प्रतिभा से अंक लाने वाले छात्रों को बाहर के लोग संदेह की नज़र से देखते थे। नक़ल माफ़ियाओं और उनके राजनीतिक रसूख़ ने इन सब कार्यों को पनपने में बड़ी मदद की। परंतु वर्तमान सरकार ने इस पर बड़ी नकेल कसी। इस तरह के कार्यों में लिप्त परीक्षा केंद्रों को काली सूची में डालकर सरकार ने साफ़-सुथरी परीक्षा को संचालित कर पाने में सफलता पाई है। इससे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को एक आत्मविश्वास मिला।

मदरसों पर भी समुचित ध्यान
शिक्षा का मूल उद्देश्य सभी नागरिकों को बेहतर मानव संसाधन के रूप में विकसित करने से है। शिक्षित समाज ही बेहतर समाज को साकार करता है। शिक्षा व्यक्ति को तार्किक बनाती है, वैज्ञानिक सोच का विकास करती है। उत्तर प्रदेश के मदरसों में जो पाठ्यक्रम चल रहे थे वे धार्मिक थे परंतु उनमें वैज्ञानिकता का अभाव था, अतः वहाँ भी पाठ्यक्रम को बदल कर सीबीएसई पाठ्यक्रम लागू किया जा रहा है। वहाँ भी पढ़ने वाले बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा क्योंकि अब वे केवल मजहब से जुड़े मात्र पाठ्यक्रम नहीं अपितु एक पूर्ण पाठ्यक्रम पढ़ेंगे जो उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा।

कई स्तरों पर योगी सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने और उसके समावेशी रूप को लगातार बेहतर करने का जो बीड़ा उठाया है वह आने वाले वर्षों में फलित होता हुआ दिखाई देगा। बीमारु और पिछड़े राज्यों की संज्ञा वाले राज्यों को इनसे एक सीख अवश्य लेनी चाहिए। समाज के पिछड़े, दलित-शोषित और वंचित वर्ग के बच्चे जो किसी भी कारण शिक्षा से वंचित रहे, उन्हें शिक्षित करने का प्रयास हो रहा है।

गरीबी के कारण कुपोषित भविष्य न तैयार हो, इसलिए उन्हें मिड डे मील के माध्यम से भरपूर पोषण के साथ-साथ अन्य सभी शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध करा के शिक्षा क्षेत्र को बदलने का भागीरथ प्रयास हो रहा है। इससे यह उम्मीद मजबूत होती है कि हमारे प्रदेश और फिर देश का आने वाला भविष्य बेहतर होगा।

(इस लेख के लेखक लेखक दिग्विजय सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं ‘होप’ संस्था के संस्थापक हैं। अनुराग सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं ‘होप’ संस्था में रिसर्च फेलो हैं।)

Courtesy: OpIndia

स्कूलों में 60 लाख बच्चे बढ़े, 1.84 करोड़ मुफ्त पुस्तकें… दिव्यांग छात्रों से लेकर स्कूलों में सुविधाओं तक, 7 पॉइंट्स में समझें योगी सरकार ने कैसे बदल दी यूपी की शिक्षा व्यवस्था

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