अयोध्या में बना मंदिर जगत में राम छाए हैं|
प्रतिष्ठा प्राण की करिए हृदय में राम आए हैं|
शपथ लेकर चले घर से अयोध्या में रुके आकर,
हुए बलिदान कितने ही हृदय पर गोलियां खाकर,
उन्हीं को कर नमन सबने समर्पण भाव पाए हैं।
प्रतिष्ठा प्राण की करिए हृदय में राम आए हैं।
मिला आवास तम्बू में कुटिल चालें गईं खेली,
सहे आघात पावस के शरद सँग ग्रीष्म थी झेली,
भटक न्यायालयों में ये बहुत ही चोट खाए हैं।
प्रतिष्ठा प्राण की करिए हृदय में राम आए हैं।
सुदर्शन को कभी धारे कभी फरसा उठाए हैं,
हृदय में भाव वीरोचित धनुर्धर ने जगाए हैं,
बनी सरकार इनकी जब तभी से मुस्कुराये हैं।
प्रतिष्ठा प्राण की करिए हृदय में राम आए हैं।
अधर्मी को पकड़कर प्रेम से पटका व धोया है,
जगत को एकता के सूत्र में प्रतिक्षण पिरोया है,
मुदित ‘अम्बर’ धरा को जो सुहाने दिन दिखाए हैं।
प्रतिष्ठा प्राण की करिए हृदय में राम आए हैं।
रचनाकार:
91, आगा कॉलोनी सिविल लाइंस सीतापुर
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