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कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस आदि जैसी जातिवादी इस्लामिक सांप्रदायिक (जाइसा) पार्टियां और उन से जुड़े मौलाना आजकल संशोधित वक्फ कानून के खिलाफ मुसलमानों में जहर फैलाने में लगे हैं। एक से बढ़ कर एक झूठे और भड़काऊ बयान दिए जा रहे हैं और खुलेआम हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है। कुछ जाइसा दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है लेकिन ज्यादातर मुस्लिम संगठन ये स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर न्यायालय ने उन्हें मनपसंद फैसला नहीं सुनाया तो वो ‘कुछ भी’ कर गुजर सकते हैं।

इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। संकेत साफ हैं – सीएए और एनआरसी पर हुए दंगों के बाद देश भर में एक बार फिर बड़े पैमाने पर दंगों और हिंसा की पटकथा लिखी जा रही है। सीएए और एनआरसी के खिलाफ जब जाइसा पार्टियों और सांप्रदायिक इस्लामिक संगठनों ने फर्जी आंदोलन शुरू किया तो इससे पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रामलीला मैदान से निर्णायक युद्ध का आहवान किया था और बेहद भड़काऊ बयान दिए थे। उनके बेटे राहुल और प्रियंका ने भी उनकी विषैली बातों को पूरे जोर-शोर से दोहराया था। उसके बाद देश में जैसे शाहीन बाग सरीखे आग लगाऊ धरने हुए और जैसे पूर्वात्तर दिल्ली को दंगों की आग में झोंका गया वो सर्वविदित है। कांग्रेस और अन्य जाइसा पार्टियां एक बार फिर दंगों और हिंसा के लिए जमीन तैयार कर रही हैं। जाहिर है, इनका मकसद देश को गृहयुद्ध की आग में झोंकना है।

सीएए-एनआरसी को लेकर हुए दंगों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन अब तक इस मामले में इन पार्टियों के किसी भी प्रमुख नेता के खिलाफ कोई मामला तक दर्ज नहीं हुआ है। सोनिया, राहुल और प्रियंका भड़काऊ बयानों के बावजूद छुट्टे घूम रहे हैं। आम आदमी का एक पार्षद जरूर इस मामले में पकड़ा गया, लेकिन इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ जिन्होंने इसे अंदर ही अंदर पूरा समर्थन दिया।
वर्ष 1984 में दिल्ली में सिखों के खिलाफ जनसंहार हुआ। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। अगर उनका समर्थन और आशीर्वाद न होता, तो ये जनसंहार भी नहीं होता। लेकिन राजीव गांधी के खिलाफ किसी ने उंगली तक नहीं उठाई। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश यादव की सरकार के दौरान मुसलमानों को खुली छूट मिली हुई थी। उनके कार्यकाल में राज्य में दसियों दंगे हुए, लेकिन बाप-बेटे के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई। हाल ही में संभल में हुए दंगों का मामला लीजिए। यहां अब भी पुलिस असली अपराधी स्थानीय सांसद जिया उर रहमान बर्क को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। सोचने की बात है कि क्या बर्क ने ये दंगे पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की सहमति के बिना करवाए होंगे जिन्होंने दंगों में कुछ लोगों की हत्या और आगजनी की बाद खुलेआम पुलिस को ही दोषी ठहराना और झूठे बयान जारी कर फर्जी नैरेटिव बनाना शुरू कर दिया था।
आजकल संशोधित वक्फ कानून के विरोध के नाम पर पश्चिम बंगाल में दंगे करवाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भड़काऊ बयानों के बावजूद केंद्र सरकार ने अब तक उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया है।
संक्षेप में कहें तो जाइसा पार्टियों के बड़े नेता दंगे करवाते हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। छोटे-मोटे दंगाई पकड़े जाते हैं लेकिन उनके विरूद्ध भी दसियों साल तक मुकदमे चलते रहते हैं। जाहिर है हमारा कानून पूरी तरह लचर है और जाइसा नेताओं ने दंगों को राजनीतिक हथियार बना लिया है।
अब समय आ गया है कि दंगों से निपटने के लिए अलग कानून बनाया जाए। इस कानून में निम्न प्रावधान होने चाहिएः
– सबसे पहले दंगा करवाने वाली पार्टी के मुखिया को पकड़ा जाए। पूछताछ की शुरूआत उस से ही हो। अगर वो प्रथमदृष्टया दोषी पाया जाता है तो उसकी विधायकी या सांसदी तुरंत रद्द की जाए और उसके चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक लगाई जाए। यही नहीं उसे फांसी पर भी चढ़ाया जाए
– दंगे भड़काने के लिए जाइसा नेता खुलेआम झूठ बोलते हैं और भड़काऊ बयान देते हैं। सीएए कानून के लिए मुसलमानों से इन्होंने सरासर झूठ बोला कि ये कानून उनकी नागरिकता रद्द करने के लिए है। इसी तरह वक्फ संशोधित कानून के संबंध में भी ये लोग सफेद झूठ बोल रहे हैं। इसे मजहब और शरिया में दखल बताया जा रहा है जबकि ये कानून तो वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन के लिए है
इसलिए नए कानून में एक न्यायिक शक्ति संपन्न ‘सत्य आयोग’ बनाने का प्रावधान हो। इसके सदस्य मौलानाओं और नेताओं के झूठे और भड़काऊ बयानों का स्वतः संज्ञान ले और उनसे तयशुदा समय में स्पष्टीकरण मांगे। अगर वो अपनी बात साबित नहीं कर पाते हैं हैं तो उन्हें पांच साल के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाएं
– अभिवयक्ति की आजादी के नाम पर भड़काऊ भाषण और बयान जारी करने वाले धार्मिक-राजनीतिक नेताओं के खिलाफ तुरंत कार्रवाई का प्रावधान हो। ऐसे लोगों को बढ़ावा देने वाले मीडिया संगठनों पर भी कार्रवाई हो। ‘निष्पक्षता’ की आड़़ में भड़काऊ बयान चलाने वाले मीडिया संगठनों को बैन करने का प्रावधान हो
– दंगों से निपटने के लिए अविलंब विशेष अदालत के गठन का प्रावधान हो
– चार्जशीट दायर करने के लिए समय सीमा तय हो
– इलाके की कानून व्यवस्था के लिए स्थानीय एसएचओ और खुफिया अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो। दंगों के लिए सबसे पहले उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए और बर्खास्त किया जाए
– संवेदनशील मुस्लिम बहुल इलाकों की नियमित जांच को कानूनी तौर पर अनिवार्य बनाया जाए। इसमें घरों और छतों की तलाशी और ड्रोन निगरानी शामिल हो
– आजकल हर दंगे की वीडियो फुटेज उपलब्ध होती है। फुटेज मिलते ही दंगाइयों के घर सील किए जाएं। उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन देने वाले परिजनों और पड़ोसियों की जिम्मेदारी तुरंत तय हो। यदि ऐसे लोग सरकारी नौकरियों में हों तो उन्हें तुरंत बर्खास्त करने का प्रावधान हो
– दंगाइयों के चिन्हित होते ही उनके घरों के बिजली, पानी गैस आदि के कनेक्शन काटे जाएं। एक माह के भीतर उनके घर गिराने का प्रावधान हो
– सोशल मीडिया और मेल आदि की निगरानी के लिए कड़े कानून बनाए जाएं
– विशेष दंगारोधी कानून में कम से कम एक साल तक जमानत न दिए जाने का प्रावधान हो। जो दंगाई वीडियो में चिन्हित हो गए हैं उन्हें कम से कम दस साल की सजा का प्रावधान हो। अगर कोई दंगाई बंदूक चलाता, पेट्रोल बम फेंकता या आगजनी करता पाया जाए तो उसे उम्र कैद की सजा हो। दंगों की योजना बनाने वाले नेताओं के लिए फांसी की सजा का प्रावधान हो
आजकल अनेक दंगाई नेताओं के पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई आदि देशों से कनेक्शन पाए जाते हैं। विदेश में बैठे लोगों की वापसी और उन्हें सजा दिलवाने के लिए प्रभावी कानून बनाए जाएं
जब तक दंगारोधी कानून नहीं बनता, दंगों को देशद्रोह माना जाए और दंगाइयों पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया जाए और उनकी जांच एनआईए से करवाई जाए
संक्षेप में कहा जाए तो पहले तो दंगा रोकन के लिए पर्याप्त निगरानी की व्यवस्था हो। यदि फिर भी नेता दंगा भड़काते हैं तो उन्हें और उनके चेलों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।

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