‘बचपन से मुझे लड़कियों वाले शौक थे… एक दिन लड़के ने मेरी पैंट खींच दी’ इस मॉडल की कहानी बहुत कुछ सिखाती है

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कैसे एक मॉडल पहले लड़के की तरह रहती थी लेकिन भीतर किसी कोने में लड़की बसती थी। सयानी हुई तो उसे कई परेशानियां समझ में आने लगीं। शरीर में हुए बदलाव ने डरा दिया। घरवालों को बताया पर लोग समझने से ज्यादा उसे समझाने लगे। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। आज दुनिया उसे एला वर्मा के नाम से जानती है।

‘बचपन से मुझे लड़कियों वाले शौक थे। एज के साथ आप धीरे-धीरे चीजें समझते हो, डिस्कवर करते हो। एक एज आई तो मुझे लगा कि कुछ अलग है। सब चल रहा था कि लगा हां कुछ 2-3 चीजें अलग है फिर प्यूबर्टी के टाइम पर, जब मेरी बॉडी ऐसे तरीके से डिवेलप हुई जो मुझे लगा कि ये मेरे लिए नैचरल नहीं है। तब लगा कि कुछ चक्कर है पैरेंट्स को बताते हैं। फिर हम डॉक्टर के पास गए। वहां से देव से देवी की जर्नी शुरू हुई… मेरे लड़कियों वाले शौक को पहले कोई प्रोत्साहित नहीं करता था। किसी को पसंद नहीं था लड़का लड़कियों वाली चीजें करे। वैसे कपड़े पहने या वैसी चीजों से खेले। लेकिन मेरी मौसी को कोई प्रॉब्लम नहीं थी। वह पार्लर में काम करती थीं और हमेशा मुझे साथ लेकर जाया करती थीं। वापसी में हम राजौरी गार्डन मार्केट में जाते थे। वहां से मुझे बार्बी डॉल दिलाती थीं। बार्बी की मूवीज मुझे बेहद पसंद थी और उसमें मेरी फेवरिट मूवी बार्बी एंड आइलैंड प्रिसेंज थी। उसमें मेन कैरेक्टर का नाम था रोजैला तो वहां से मैंने नाम लिया Ella…खुद ही नाम रखा। आत्मनिर्भर वाला।

जिंदगी इतनी आसान न थी

 

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मैं लड़कियों की तरह रहती थी

एक समय मुझे लगा कि लड़कों की तरह ऐसे उठते-बैठते हैं और लड़कियां ऐसे रहती हैं। फिर मुझे लगा कि मैं तो लड़कियों वाली साइड में कम्फर्टेबल हूं। उधर से कन्फ्यूजन चली। बाहर वाले लोगों से प्रेशर आ रहा था। प्यूबर्टी की उम्र के समय जब आपमें शारीरिक चेंजेज और डिवेलपमेंट होती है उसमें मेरे फेसिएल हेयर (चेहर के बाल) आए क्योंकि मेरा शरीर मेल यानी पुरुष का था और जब ऐसे तरीके से डिवेलप हुई तो मुझे ऑथेंटिक फील नहीं हुआ। तब मुझे समझ में आ गया कि ओह! बहुत बड़ी प्रॉब्लम है। अभी तक था कि रास्ते में लड़के मजाक उड़ा रहे हैं। घरवालों की पसंद नहीं है। अब ऐसा हो गया था कि मेरी बॉडी ही मेरे खिलाफ काम कर रही है। वहां मैंने पैरेंट्स को बताया… उस समय मेरे पास दूसरे विकल्प ये थे कि मैं बर्दाश्त करती रहूं ऐसे ही जीवन बिताऊं या अपनी जान दे दूं। शुरू में उन्हें भी समझ नहीं आया और न मैं खुलकर बता पाई। मम्मी को थोड़ी-बहुत बात समझ आई और उन्हें लगा कि शायद मैं गे (Gay) हूं। उन्हें लगा कि ठीक कर देंगे। उनको लगा कि बीमारी है, गलत बात है। वे डरे भी हुए थे क्योंकि इन सारी चीजों की बातें नहीं होती हैं। मम्मी-पापा ने पहले बहलाना-फुसलाना शुरू किया। फिर उन्होंने कंप्रोमाइज करने की कोशिश की मेरे साथ… तुमको जो करना है करो, अपने कमरे में करो बाहर मत करो। मतलब डबल लाइफ जियो। जैसे घर में लड़की की तरह रहो और बाहर जाकर लड़के की तरह।

उस दिन टॉयलेट में…
मैं स्कूल में लड़कों के साथ घुल-मिल नहीं पाती थी। मुझे लड़कियों के साथ रहना पसंद था। क्रिकेट नहीं स्केचिंग पसंद थी। एक समय के बाद कहा जाने लगा कि तुम ये हो क्या, तुम ऐसे क्यों करती हो क्योंकि उस एज में मूवी में देखकर बच्चे भी थोड़ा-बहुत समझने लगते हैं। ‘छक्का’, ‘हिजड़ा’ जैसे नाम से बुलाने लगे। देखिए एक ट्रांसजेंडर इंसान के लिए ना, उसकी बॉडी बहुत बड़ी इनसिक्योरिटी होती है। मैं हर चीज को लेकर इनसिक्योर थी। एक बार हमारे स्कूल के एनुअल फंक्शन की तैयारी चल रही थी हम क्लास से थिएटर रूम में जाते थे। लड़कों में यह बहुत कॉमन होता है कि वे पैंट खींच देते हैं लेकिन मेरे लिए वह बहुत ट्रॉमेटिक हो गया। आप सोचो कि मेरा सबसे ज्यादा इनसिक्योर शरीर का हिस्सा सबके सामने आ गया सोचिए कितना अपमानजनक रहा होगा। वो सबसे बुरा अनुभव था। मैं टॉयलट रूम में जाती थी। किसी ने लॉक तोड़ दिया था तो मैं आइडेंटिटी कार्ड निकालकर उससे दरवाजा बांध देती थी। मेरी लाइफ का सबसे बुरा अनुभव मेन्स वॉशरूम था।

एला आज मिसाल बन चुकी हैं

 

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लॉकडाउन लगा लेकिन…

मेरे पैरेंट्स काफी डिप्रेस्ड थे। उनको भी थेरेपी की जरूरत पड़ी। कभी-कभी लगता है कि मेरे पैरेंट्स ने इतना टाइम क्यों लगाया, जल्दी क्यों नहीं समझा। फिर लगता है कि यह उनके लिए भी नई बात थी। मुझे ही 14-15 साल लगे खुद को समझने में। मेरी तरफ से गलत हुआ उस टाइम पर। मेरा बैकग्राउंड है यूपी, हरियाणा और राजस्थान, जो कंजर्वेटिव सोच के लिए बदनाम है। प्लान बना कि ऑस्ट्रेलिया में सोसाइटी अलग है। स्कूल खत्म होगा तो मौसी के पास ऑस्ट्रेलिया जाना और वहां जेंडर चेंज करा देना। जैसे ही मेरा स्कूल खत्म होने वाला था। कोविड का टाइम था लॉकडाउन लगा। मेरी बिजनस फैमिली है। हॉस्टल-पीजी का काम था। उस समय अर्निंग नहीं थी और सेविंग भी खत्म थी। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया जाना नहीं हुआ। हमें मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए 18 साल होने का वेट करना था। लॉकडाउन में ही ट्रांजीशन शुरू हुआ। 18 साल पूरे होने के दूसरे ही दिन मैं डॉक्टर के पास गई और कहा कि आप मेरी दवा शुरू कर दीजिए।

दवा में आपको वे क्या देते हैं। जैसे मैं लड़का से लड़की बन रही हूं तो वे मुझे लड़के वाले हॉर्मोन को ब्लॉक करने के लिए दवा देते हैं फिर फीमेल चेंजेज इंट्रोड्यूस करने के लिए बॉडी में एस्ट्रोजन देते हैं। फिर से चेक कराया गया। फिर हम हॉर्मोंस के डॉक्टर के पास गए। ये हॉर्मोंस एक साल तक लेने होते हैं उसके बाद ऑपरेशन होता है। एक तरह से प्यूबर्टी दोबारा। फिजिकल चेंजेज जैसे कमर, ब्रेस्ट का हिस्सा डिवेलप होने लगा। इमोशनली बड़ा चैलेंज था।’

(सेक्स चेंज कराने वाली मॉडल Ella D’ Verma ने जैसा ‘लल्लनटॉप’ को बताया)
इंस्टा पर एक्टिव रहती हैं एला

 

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Courtesy
https://navbharattimes.indiatimes.com/india/ankhon-dekhi-ella-verma-trans-model-how-suffered-to-become-girl-sex-change/articleshow/103564442.cms

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