सुप्रीम कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में बड़े पैमाने पर पेड़ों के कटान और अवैध निर्माण को स्वीकृति देने के लिए उत्तराखंड के पूर्व वन मंत्री और कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत और पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी किशन चंद को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने सीबीआई से तीन महीने में मामले की स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की संयुक्त पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनेताओं और वन अधिकारियों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप पर्यावरण को भारी क्षति हुई है।
पर्यावरण कार्यकर्ता और अधिवक्ता गौरव बंसल की ओर से दायर याचिका में पाखरो टाइगर सफारी में अवैध निर्माण के साथ-साथ पेड़ों की अवैध कटाई के कारण लैंसडाउन वन प्रभाग में बाघों के निवास स्थान को नष्ट करने और बाघ घनत्व में गिरावट का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने पहले रावत और किशन चंद को सीटीआर में कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो और मोरघट्टी वन क्षेत्रों में 2021 में बाघ सफारी के संबंध में निर्माण सहित विभिन्न अवैध गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराया था। शीर्ष न्यायालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने रावत और चंद को पाखरो और मोरघट्टी वन क्षेत्रों में अवैध निर्माण गतिविधियों का दोषी ठहराया।
उत्तराखंड सतर्कता विभाग को अनियमितताओं में शामिल वन अधिकारियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही जारी रखने के लिए हरी झंडी भी दे दी थी। समिति ने कहा था कि जब मीडिया पाखरो और मोरघट्टी में सभी प्रकार की गड़बड़ियों की रिपोर्ट कर रहा था, तब भी तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन और राज्य सरकार ने दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की।
संयुक्त पीठ ने कहा कि चूंकि मामले की जांच सीबीआई के पास लंबित है। इसलिए हम इस मामले पर आगे कोई टिप्पणी करने का प्रस्ताव नहीं रखते हैं। हमने यह भी देखा है कि यह केवल दो व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता है। इसमें कई अन्य व्यक्ति भी शामिल रहे होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के अधीन कार्बेट के परिधीय और बफर जोन में बाघ सफारी की स्थापना की अनुमति दे दी है।
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