अजमेर दरगाह बलात्कार मामला: दो मजहबी भेड़ियों के बीच फँसी लड़की की यह तस्वीर भले धुँधली है, लेकिन इसके बारे में आपकी जानकारी साफ होनी चाहिए

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आज जो तस्वीर आपको धुँधली दिख रही है, वह कभी इसी कैप्शन के साथ एक अखबार में छपी थी। यह उन सैकड़ों तस्वीरों में से एक है जो देश के सबसे बड़े सेक्स कांड के दौरान खींची गई। 90 के दशक में इस सेक्स कांड को राजस्थान के अजमेर में अंजाम दिया गया। 100 से अधिक लड़कियों को ब्लैकमेल किया गया। उनका बलात्कार किया गया।

साल था 1992। तारीख थी 16 मई। अखबार था दैनिक नवज्योति। शीर्षक था- ब्लैकमेल कांड की जानकारी गुप्तचर विभाग ने 5 माह पूर्व दे दी थी। इसी रिपोर्ट का हिस्सा आज धुँधली सी दिख रही यह तस्वीर भी थी। चूँकि उस समय गोदी मीडिया नहीं थी तो एक स्थानीय अखबार को इस खबर का उद्भेदन करना पड़ा। टीवी पत्रकारिता नहीं थी तो प्राइम टाइम की बहस इसके हिस्से नहीं आई। सोशल मीडिया नहीं था तो लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि कैसे इस खबर पर लीपापोती के प्रयास हुए ताकि एक दरगाह पर आने वाले हिंदुओं की संख्या कम न हो।

1992 में दैनिक नवज्योति में प्रकाशित खबर (फोटो साभार: आज तक)

इंटरनेट क्रांति की वजह से आज सब कुछ सर्वसुलभ है। प्रिंट, टीवी, डिजिटल पत्रकारिता है। गोदी मीडिया है। सूचना मेनस्ट्रीम मीडिया की बंधुआ नहीं है। सोशल मीडिया है। वो ऐतिहासिक प्रमाण हैं जो बताते हैं कि जिसे ‘सूफी संत’ बताया जाता है, जिसकी दरगाह पर हिंदुओं की भीड़ लगती है, दरअसल कभी उसकी शह पर अजमेर में मंदिर तोड़े गए थे। गोहत्या की गई थी। सेक्स स्कैंडल पर लीपापोती करने वाली ताकतें सत्ता से बाहर हैं। अजमेर 92 (Ajmer 92) नाम से इस सेक्स स्कैंडल पर एक फिल्म आने वाली है। इसलिए दरिदंगी की वे कहानियाँ फिर से चर्चा में हैं जिसने कइयों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया। जिन्हें अंजाम देने वालों को कभी वो सजा न मिल सकी जो भविष्य के लिए सबक बन सके।

इस सेक्स स्कैंडल की कहानी को पर्दे पर आने से रोकने के लिए मजहबी कट्टरपंथी आज भी वही (कु) तर्क दे रहे हैं जिन्हें आधार बनाकर 90 के दशक में इस मामले पर पर्दा डालने की कोशिश हुई थी। कहा जा रहा है कि इससे अजमेर की दरगाह और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की कथित छवि को नुकसान होगा। ख्वाजा को लाखों दिलों पर राज करने वाला शांतिदूत बताया जा रहा है। जब इनसे बात बनती नहीं दिखी तो दरगाह के खादिम परिवारों से जुड़े सेक्स कांड के मास्टरमाइंडों की जगह उन हिंदुओं के नाम आगे किए जा रहे हैं, जिनकी भूमिका को लेकर सवाल उठे थे। ऐसा ही प्रयास करते हुए इंडियन मुस्लिम फाउंडेशन के अध्यक्ष शोएब जमई जो हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलने के लिए कुख्यात है ने एक ट्वीट में कहा है, “फिल्म ‘अजमेर 92’ शहर में घटित एक आपराधिक घटना जिसमें (भरोसा कलर लैब) के महेश लुडानी और डॉक्टर जयपाल की प्रमुख भूमिका थी, और कुछ स्थानीय अपराधी शामिल थे, तक सीमित है तो हमारा कोई ऑब्जेक्शन नहीं है…”

 

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