न पार्टी बची न बचा परिवार… जिसे ‘चाणक्य’ बता कर ढोल पीट रही थी मीडिया, उसका उद्धव ठाकरे से भी बुरा हाल: अब क्या करेंगे शरद राव पवार?

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महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद अब NCP टूट गई है। पार्टी के संस्थापक शरद पवार के भतीजे और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजित पवार अब महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री बन गए हैं। इतना ही नहीं, उनके साथ-साथ छगन भुजबल, धनंजय मुंडे, दिलीप वालसे पाटिल और अनिल पाटिल जैसे शरद पवार के करीबी भी मंत्री बनाए गए हैं। यहाँ तक कि प्रफुल्ल पटेल, जिन्हें शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के साथ पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था – वो भी उनका साथ छोड़ कर इस शपथग्रहण समारोह में मौजूद रहे।

अब थोड़ा सा पीछे चलते हैं। मई 2023 की शुरुआत में शरद पवार ने जब राष्ट्रवादी काॅन्ग्रेस (NCP) का अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा की तो मीडिया ने इसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया । जब जून में उन्होंने बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया तो इसमें भी मीडिया ने उनका ‘राजनीतिक कौशल’ देखा। कहा गया कि उन्होंने एनसीपी का भविष्य तय कर दिया है और भतीजे अजित पवार को भी उनकी राजनीतिक हैसियत समझा दी है। लेकिन, जुलाई की 2 तारीख आते-आते शरद पवार के मास्टर स्ट्रोक की बत्ती बन चुकी है।

राजनीतिक कौशल का पता नहीं, उनके खुद के राजनीतिक भविष्य पर संकट खडे हो गए हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा में करीब-करीब एनसीपी साफ हो गई है। 53 विधायकों वाली पार्टी के ज्यादातर विधायक और अधिकतर बड़े नेता अजित पवार के साथ जा चुके हैं। 82 वर्षीय शरद पवार अब उस अवस्था में भी नहीं रहे कि सक्रियता दिखा कर अपने खेमे को गोलबंद करें और अपनी बेटी के नेतृत्व में काम करने के लिए मनाएँ। कुल मिला कर सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही पतन शुरू हो गया था।

यानी, मीडिया और राजनीतिक विश्लेषक जिन फैसलों को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बता रहे थे, वही एनसीपी के पतन का कारण बनी। NCP में शरद पवार के बाद अजित ही पार्टी के प्रबंधन से लेकर नेताओं को एकजुट रखने का काम अब तक देखते रहे हैं। ये चौथी बार है, जब अजित पवार राज्य के डिप्टी CM बने हैं। शरद पवार की पार्टी का भी वही हाल हुआ है, जो शिवसेना का हुआ था। आइए, पूरे खेल को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं क्योंकि हमें 2019 विधानसभा चुनाव को समझना पड़ेगा।

संक्षेप में बात करते हैं, फिर मुद्दे पर आएँगे। 2014-19 तक महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार चली। तनातनी की खबरें आती रहीं, लेकिन सरकार पर कोई संकट नहीं आया। 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत भाजपा ने 152 और शिवसेना ने 124 सीटों पर चुनाव लड़ा। भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें प्राप्त की। इसके बाद शिवसेना का ड्रामा शुरू हुआ। पार्टी ने देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व को नकारते हुए अपनी पार्टी से CM बनाने की माँग रख दी।

पार्टी मुखपत्र ‘सामना’ के एग्जीक्यूटिव एडिटर और राज्यसभा सांसद संजय राउत जैसे नेताओं ने उलूल-जलूल बयान देने शुरू कर दिए और कहने लगे कि अगला सीएम शिवसेना से होगा। भाजपा ने मनाने की लाख कोशिश की, लेकिन उद्धव ठाकरे टस से मस नहीं हुए। पार्टी ने अपने विधायकों को बांद्रा में समुद्र किनारे स्थित रंग शारदा होटल में रखा, फिर उन्हें दूर मड आइलैंड्स में रखा। बड़ी बात ये है कि उस समय इन सबमें बढ़-चढ़ कर भूमिका निभा रहे एकनाथ शिंदे और रामदास कदम जैसे नेता अब भाजपा गठबंधन के साथ हैं।

खैर, किसी तरह शरद पवार ने डील फाइनल की और कॉन्ग्रेस-शिवसेना को एक साथ लेकर आए और राज्य में NCP के साथ मिल कर इन दोनों दलों ने ‘महा विकास अघाड़ी (MVA)’ की गठबंधन सरकार बनाई। लेकिन, उससे पहले जो हुआ वो चौंकाने वाला था। राष्ट्रपति शासन लग चुका था। अचानक से अजित पवार ने तड़के सुबह भाजपा का साथ देते हुए डिप्टी CM की शपथ ले ली। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने, लेखों ये सरकार मात्र 3 दिनों तक चल सकी। अजित पवार वापस चाचा के खेमे में चले गए।

सरकार गिर गई और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया। अजित पवार इस सरकार में भी उप-मुख्यमंत्री बने। लेकिन, इस दौरान मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों ने शरद पवार का जो महिमामंडन किया, वो देखने लायक था। जिस व्यक्ति ने आज तक कभी मुख्यमंत्री का 5 साल का पूरा कार्यकाल नहीं चलाया, जिसकी पार्टी को कभी राज्य में बहुमत मिला ही नहीं, उसकी तुलना अमित शाह से की जाने लगी। अमित शाह, जो उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।

हालाँकि, उद्धव ठाकरे की सरकार ढाई साल चली और जून 2022 में एकनाथ शिंदे सहित कई बड़े नेताओं ने बगावत कर दिया। अंततः एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने और शिवसेना टूट गई। उद्धव ठाकरे की एक जिद ने 40 विधायकों और 13 सांसदों को उनसे दूर कर दिया। ढाई साल बाद ही सही, शिवसेना टूटी और उद्धव ठाकरे के साथ रह गए प्रियंका चतुर्वेदी और संजय राउत। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने। आज उद्धव ठाकरे के साथ जो संख्या है, 2024 लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बाद वो और घट जाएगी।

शिवसेना के टूटने के एक साल बाद अब एनसीपी टूटी है। ये सबक है उन्हें, जो शरद पवार को चाणक्य बताते नहीं थक रहे थे और अमित शाह का मजाक बना रहे थे। मराठी पत्रकार निखिल वागले ने भी शरद पवार को चाणक्य बताया। इसी तरह से तमाम पत्रकारों और भाजपा विरोधी गिरोह ने उन्हें ‘चाणक्य’ बता कर पेश किया। शिवसेना का मुख्यमंत्री तो भाजपा भी चाहती तो बना सकती थी, शरद पवार ने किसी NCP नेता को तो सीएम बनाया नहीं, लेकिन उनकी तारीफों के पुल बाँधे जाने लगे।

बात यही है कि जिस तरह बालासाहब ठाकरे के पुत्रमोह ने शिवसेना को डूबा दिया, ठीक उसी तरह शरद पवार के पुत्रीमोह NCP को खा गया। सुप्रिया सुले अपने पिता के गढ़ बारामती से सांसद हैं, जहाँ से शरद पवार भी 6 बार जीत चुके हैं। 1991 में अजित पवार भी यहाँ से सांसद बन चुके हैं। अजित पवार लंबे समय से राजनीति में सक्रिय हैं और उन्होंने लगातार 7वीं बार बारामती से जीत दर्ज की है। उनके पास अलग-अलग सरकारों में कई मंत्रालयों को सँभालने का अनुभव है और संगठन का भी।

अनुभव हो या राजनीतिक दक्षता, किसी भी क्षेत्र में सुप्रिया सुले अपने बड़े भाई अजित पवार के सामने नहीं टिकतीं। इसके बावजूद शरद पवार ने अपनी बेटी को अपना उत्तराधिकारी बनाया, और मीडिया ने इसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ बता दिया। कहा तो ये जाना चाहिए था कि शरद पवार अपने ही परिवार को नहीं सँभाल पा रहे हैं। लेकिन, ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ जैसे मीडिया संस्थानों में अंग्रेजी में लंबा-चौड़ा ओपिनियन लिख कर उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया।

शरद पवार की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा तो प्रधानमंत्री और कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने की थी, इसके लिए उन्हें हाथ-पाँव भी मारा। लेकिन, 90 के दशक में अपनी सक्रियता के दौरान भी वो इसमें विफल रहे। उन्हें राष्ट्रपति तक बनाए जाने की बातें चलीं, लेकिन वो भी नहीं हो पाया। अब स्थिति ये हो गई है कि मीडिया ने जिसे ‘चाणक्य’ बता कर पेश किया, वो न अपना पार्टी बचा पाया और न परिवार। अगले चुनाव में उनका और उद्धव का पूरी तरह पत्ता साफ़ होता दिख रहा है।

वैसे अब आश्चर्य न हो कि कल को शरद पवार को ‘चाणक्य’ बता कर उनका महिमामंडन करने वाले अब ये कहने लगें कि ED/CBI जैसी केंद्रीय जाँच एजेंसियों के डर से ये सब हो रहा है। अब बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं, तो चुनाव बाद EVM का रोना की तरह इस तरह का नया क्रंदन भी शुरू हो सकता है। शरद पवार की पार्टी और परिवार, दोनों टूट चुके हैं। उनका समर्थन करने वाले अब नया रोना क्या निकालते हैं, इस पर सभी की नजरें रहेंगी।

Courtesy: OpIndia

न पार्टी बची न बचा परिवार… जिसे ‘चाणक्य’ बता कर ढोल पीट रही थी मीडिया, उसका उद्धव ठाकरे से भी बुरा हाल: अब क्या करेंगे शरद राव पवार?

 

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