एक ओर से कहा जाता है कि दिल्ली में कांग्रेस का अस्तित्व नहीं है तो वहीं दूसरी ओर से यह कहा जाता है कि आम आदमी पार्टी में अपरिपक्व लोग हैं। कुछ दिन पहले साथ आते हैं और कुछ ही समय में अलग होने की बात करने लगते हैं। ऐसे में यह भी सवाल है कि दिल्ली में AAP और कांग्रेस दोनों साथ आए तो क्या बीजेपी को हरा सकते हैं।
नई दिल्ली: पिछले महीने की ही बात है जब कांग्रेस और AAP दोनों दल एक साथ आने का फैसला करते हैं। दिल्ली वाले बिल पर केजरीवाल की शर्त थी कि कांग्रेस इसके विरोध का ऐलान करे तभी वह विपक्षी दलों की मीटिंग में जाएंगे। हुआ भी ठीक वैसा। कांग्रेस ने बिल का विरोध किया और आम आदमी पार्टी का समर्थन करने का फैसला। संसद में दिल्ली वाला बिल तो पास हो गया लेकिन मॉनसून सत्र में कांग्रेस और AAP के बीच अच्छी बॉन्डिंग दिखी। हालांकि मॉनसून सत्र के समाप्त होने के कुछ ही दिन बाद एक बार फिर दोनों दलों के बीच खींचतान बढ़ गई है। दोनों दलों के बीच सीटों को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है और इसी बीच कांग्रेस नेता अलका लांबा के दिल्ली के सभी सात सीटों पर तैयारी वाले बयान के बाद विवाद काफी बढ़ गया। दोनों ओर से बयानबाजी भी शुरू हो गई। हालांकि कुछ घंटे बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिश हुई। ऐसे में जिस दिल्ली को लेकर बवाल मचा है उसमें यह जानना जरूरी है कि क्या दोनों दल साथ मिलकर लड़े तो वह बीजेपी को मात दे सकते हैं?
पिछले चुनाव की बात की जाए तो दिल्ली की सभी सात सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दिल्ली में 57 फीसदी वोट शेयर के साथ सभी सात सीटें मिली। वहीं कांग्रेस को इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के मुकाबले अधिक वोट हासिल हुए। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में जहां कांग्रेस पार्टी शून्य पर पहुंच गई लेकिन विधानसभा चुनाव में वह आम आदमी पार्टी से अधिक वोट हासिल करती है। इसका जिक्र भी अलका लांबा की ओर किया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 23 प्रतिशत और AAP को केवल 18 प्रतिशत वोट शेयर मिला।
ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों के वोट शेयर को जोड़ देते हैं तो यह आंकड़ा पहुंचता है 41 फीसदी के करीब। फिर भी बीजेपी उनसे कहीं आगे है।2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली की 70 सीटों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं हुई। बावजूद इसके 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं से AAP की तुलना में उसे अधिक वोट मिले। सात लोकसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। इस चुनाव में AAP तीसरे नंबर पर रही।
दो लोकसभा सीट केवल दक्षिण दिल्ली और उत्तर-पश्चिम दिल्ली में दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को अपनी दूसरी पसंद के रूप में चुना। दक्षिणी दिल्ली में बीजेपी के रमेश बिधूड़ी को 56.57 फीसदी वोट मिले तो वहीं AAP के राघव चड्ढा को 26.34 फीसदी और कांग्रेस के बॉक्सर विजेंदर सिंह को सिर्फ 13.55 फीसदी वोट मिले। वहीं उत्तर-पश्चिम दिल्ली संसदीय सीट पर भाजपा के हंसराज हंस को 60.49 प्रतिशत वोटों के साथ जीत मिली। इस लोकसभा क्षेत्र में AAP के उम्मीदवार रहे गुग्गन सिंह 21 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रहे। वहीं कांग्रेस के राजेश लिलोठिया केवल 16.88 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
दिल्ली के पिछले दो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। वहीं दूसरी ओर बीजेपी विधानसभा चुनाव में दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंची लेकिन लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप किया। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को उम्मीद है कि एक साथ आकर अगले चुनाव में दिल्ली में वोटर्स को एक साथ अपनी ओर खींच सकते हैं। हालांकि जिस तरीके से दोनों ओर से बयान सामने आ रहे हैं उसमें एक बात तय है कि जब नेता एक साथ नहीं आ रहे तो मतदाताओं के बीच कन्फ्यूजन और बढ़ सकता है।
Courtesy