भाजपा के साथ राजग में शामिल होने जा रहे राष्ट्रीय लोकदल (RLD) मुखिया जयंत चौधरी ने अपने दिवंगत पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की जयंती पर इसे फिर स्वीकार किया। साथ ही यह संकेत भी दिया कि आईएनडीआईए में सपा से उनका तालमेल गड़बड़ाने पर उन्होंने यह कदम उठाया।
वह खुलकर बोले भी कि परिस्थतियों के कारण कम समय में यह निर्णय लेना पड़ा। रालोद ने सोमवार को नई दिल्ली स्थित पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में पूर्व अध्यक्ष अजित सिंह की जयंती मनाई। पहले चर्चा थी कि इस अवसर पर जयंत रालोद-भाजपा गठबंधन की अधिकृत घोषणा कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं।
सीटों पर सहमति की मुहर लगते ही कर सकते हैं घोषणा
माना जा रहा है कि सीटों को लेकर हुए समझौते पर सहमति की अंतिम मुहर लगते ही वह इसकी घोषणा कर देंगे। हालांकि, उन्होंने फिर स्पष्ट किया कि वह राजग में शामिल होने का निर्णय कर चुके हैं। जयंत ने इस निर्णय को लेकर अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा कही जा रहीं बातों का उन्होंने अपने तरीके से जवाब दिया।
परिस्थितियों के कारण यह निर्णय लेना पड़ा
उन्होंने कहा कि भाजपा के साथ जाने को लेकर पहले से कोई योजना नहीं थी। ऐसा नहीं है कि पहले से ऐसा सोच रखा था, बल्कि बहुत कम समय में परिस्थितियों के कारण यह निर्णय लेना पड़ा। इस निर्णय से कुछ विधायकों के नाराज होने के प्रश्न पर रालोद मुखिया ने दावा किया कि उन्होंने अपने दल के सभी विधायकों और कार्यकर्ताओं से बातचीत करने के बाद ही यह कदम उठाया है।
चरण सिंह को भारत रत्न देना, एनडीए में शामिल होने की वजह
दल में इस निर्णय पर सर्वसम्मति का आधार संकेतों में उन्होंने अपने दादा व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने को भी बताया। उन्होंने कहा कि आज भी देश का किसान चौ. चरण सिंह को अपना मानता है। उनके साथ व्यक्तिगत रूप से काम करने वाले लोग पार्टी में हैं। चौधरी चरण सिंह को सम्मान हमारे परिवार या दल तक सीमित नहीं है। यह देश के कोने-कोने में विराजमान किसान, नौजवान और गरीबों का सम्मान है।
इन चर्चाओं से भी जोड़कर देखा जा रहा है निर्णय
‘परिस्थितियों के कारण निर्णय लिया’ जयंत के इस बयान को उन चर्चाओं से भी जोड़कर देखा जा रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव रालोद को गठबंधन में दी जा रही सात सीटों में से तीन या चार सीटों पर अपने दल के प्रत्याशियों को रालोद के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाने पर अड़े थे। इससे न सिर्फ जयंत असहमत थे, बल्कि कार्यकर्ता भी ऐसा नहीं चाहते थे। यही वजह है कि रालोद मुखिया ने अपने निर्णय में विधायकों और कार्यकर्ताओं की सहमति का दावा किया है।